हिंदी व्याकरण में श्रृंगार रस
हिंदी व्याकरण में श्रृंगार रस
श्रृंगार रस (Shringar Ras) में नायक और नायिका के मन में स्थित रति या प्रेम जब रस के अवस्था में पहुंच जाता है तो वह श्रृंगार रस (Shringar Ras) कहलाता है।
श्रृंगार रस को रसराज या रसपति कहा गया है।
इसका स्थाई भाव रति होता है
बसों मेरे नैनन में नन्दलाल
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल, अरुण तिलक दिये भाल
बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय ।
सौंह करै, भौंहनु हँसे, देन कै नटि जाय ॥
श्रृंगार रस के भेद
श्रृंगार रस के दो भेद होते हैं
1-संयोग श्रृंगार
2- वियोग श्रृंगार
संयोग श्रृंगार
जब नायक नायिका के परस्पर मिलन, स्पर्श, आलिंगन, वार्तालाप आदि का वर्णन होता है तब वहां पर संयोग श्रृंगार रस होता है।
उदाहरण:-
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
जाके सिर मोर मुकुट मेरा पति सोई
वियोग श्रृंगार(विप्रलम्भ श्रृंगार)
नायक-नायिका में वियोगदशा में प्रेम हो तो, वहाँ वियोग श्रृंगार होता है। अर्थात नायक-नायिका के वियोग का वर्णन हो वहां पर वियोग रस होता है।
उदाहरण:-
उधो, मन न भए दस बीस।
एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस॥
इन्द्री सिथिल भईं सबहीं माधौ बिनु जथा देह बिनु सीस।
स्वासा अटकिरही आसा लगि, जीवहिं कोटि बरीस॥